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________________ 61. जो जो रात बीतती है, वह वापिस नहीं प्राती है। धर्म करते हुए (व्यक्ति) की ही रात्रियाँ सफल होती हैं । 62. जिसकी मृत्यु के साथ मित्रता है, जिसके लिए ( मृत्यु से ) भागना सभव (है), जो जानता है 'मैं नहीं मरूंगा' वह ही माशा करता है ( कि) आनेवाला कल है । 63. यदि सारा जगत तुम्हारा हो जाए अथवा सारा धन भो (तुम्हारा ) (हो जाए), तो भी ( वह) सब तुम्हारे लिए अपर्याप्त ( है ) | ( याद रखो ) वह तुम्हारे सहारे के लिए कभी (उपयुक्त) नहीं ( है ) । 64. हे राजा ! (तू) सुन्दर विषयों को छोड़कर किसी भी समय निस्संदेह मरेगा । हे नरदेव ! (तू समझ कि) एक धर्म ही शरण ( है ) । यहाँ इस लोक में कुछ दूसरी (वस्तु ) ( शरण) नही होती है । " 65. जैसे जंगल में दवाग्नि द्वारा जन्तुओं के जलाए जाते हुए होने पर दूसरे (वे) जीव (जी) राग-द्वेप की अधीनता को प्राप्त (हैं) प्रसन्न होते हैं (और यह समझ नहीं पाते कि दवाग्नि उनको भी जला देगी) । 1 66. विल्कुल ऐसे ही हम मूर्ख (मनुष्य) विषय भोगों में मूच्छित होकर राग-द्व ेषरूपी अग्नि के द्वारा जलाए जाते हुए जगत् को नहीं समझ पाते हैं । चयनिका L 27
SR No.010708
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1998
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size3 MB
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