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प्रनिग्महे ।
45 जे यावि होइ निव्विज्जे पद्धे लुद्धे अभिक्खणं उल्लवई प्रविणीए अबहुस्सुए ॥
46 ग्रह पंचह ठाहि जेहि सिक्खा न लब्भई 1
थंभा १ कोहार पमाएणं ३ रोगेणऽऽलस्सएल ८४-५ ॥
47 अह अहि ठारह सिक्खासीले त्ति वुच्चई 1 श्रहस्सिरे १ सया दते २ न य मम्ममुयाहरे ॥
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48 नासोले ४ रग विसीले ५ न सिया प्रइलोलुए ६ अकोहरणे ७ सच्चरए - सिक्खासोले त्ति वुच्चद ॥
49 जहा से तिमिरविद्धसे उत्तिट्ठते दिवाकरे 1 जलते इव तेएणं एवं तेएणं एवं भवइ बहुस्सुए ॥
50 जहा से सामाइयाणं कोट्ठागारे
सुरक्खिए
नाराधन्नपडिपुन्ने एवं भवइ बहुस्सुए ॥
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उत्तराध्ययन