SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 21. जैसे सेंध द्वार पर पकड़ा गया दुराचारी चोर स्वकर्म से (ही) छेदा जाता है, इसी प्रकार हे मनुष्यं ] (तू) इस लोक में और परलोक में (अपने दुष्कर्म से ही छेदा जायेगा), चूंकि लोक में किए हुए दुष्कर्मों के फल से छुटकारा नहीं होता है। 22. संसार को प्राप्त (व्यक्ति) दूसरे (रिश्तेदारों) के प्रायोजन से जिस भी लौकिक कर्म को करता है, उस कर्म के (फल) -भोग का में वे ही रिश्तेदार रिश्तेदारी स्वीकार नहीं करते हैं। 23. प्रमादी (मूर्छा-युक्त मनुष्य) धन से इस लोक में अपवा परलोक में शरण प्राप्त नहीं करता है । (वह) अनन्त मूर्छा के कारण (शान्ति की ओर) ले जाने वाले (मार्ग) को देखकर (भो) नहीं देखकर ही (चलता है), जैसे बुझे हए दीपक के होने पर (कोई अंधकार में चलता हो)। 24. कुशल-बुद्धि विद्वान तथा जागा हुआ (आध्यात्मिक) (जीवन) जीनेवाला (व्यक्ति)- सोए हुमों (अध्यात्म को भूले हुए व्यक्तियों) पर भरोसा न करें, समय के क्षण निर्दयी (होते हैं), शरीर निवंल (है), (अतः) (तू मप्रमादी (जागत) भारण्ड पक्षी की तरह विचरण कर। ___ 1. वह छेद जो चोर दीवार तोड़कर बनानं है। चयनिका [ 11
SR No.010708
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1998
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy