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________________ 70. सरीरमाह [(सरीरं) + (माह)] सरीरं (सरीर) 211 माहुर (माह) भू 3/1 सक पनि नाव (नाबा) 2/1 अपभ्रंश ति (म)=चूकि जोबो (जीव) 1/1 दुग्बा (बुन्चइ) व कम 3/1 सक पनि नाविमो (नाविप) 1/1 संसारो (संसार) 1/1 मणको (मण्णव) 1/1 वृत्तो (वुत्तो) भूक 1/1 पनि (ज) 2/1 स तरंति (तर) व 3/2 सक महेसिपो [(मह) + (एसियो) ] [(मह)-(एसि) 1/2 वि] 71. उबनेको (नवलेव) 1/1 होइ (हो) व 3/1 प्रक भोगेसु (भोग) 712 प्रभोगी (मभोगि) 111 वि नोबलिप्पा [(न । (उवलिप्पई)] न (म)-नही उवलिप्पई (नबलिप्पदा व कर्म 3/1 सक पनि भोग्गे (भोगि) 1/1 नि भमा (भम) व 3/1 सक संसारे (ससार) 7/1 विप्पमुन्नई (विप्पमुच्चइ) व कर्म 3/1 सक मनि. 72. उल्लो (उल्ल) 1/1 वि सुरको (सुक्क) 1/1 वि य (म) -पोर दो (दो) 1/2 वि छटा (छुढा) भूक 1/2 अनि गोलया (गोलय) 1/2 मट्टियामया [(मट्टिया)-(मय) 1/2 वि] दो (दो) 1/2 1. पिशल : प्राकृत भाषामो का पाकरण, पृष्ठ 755 2. कभी कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-माकरण : 3-135) 3. दे गावा 1. 4. कभी कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया पाया है। (हेम-प्राव-माकरण : 3-135) उत्तराध्ययन
SR No.010708
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1998
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size3 MB
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