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________________ किच्च। (किच्च) मूल शब्द 1/1 वि प्रकिण्वं (प्रकिच्च) 111 वि तं (त) 211 मवि एवमेव (एवं) + (एवं)] एवं (प्र)-इस प्रकार एवं (4) ही लालप्पमागं (लामप्प) व 2/1 हरा (हर) 1/2 हरंति (हर) व 3/2 सक ति (प)-प्रतः कहं (म)-से पमाए (पमाम) 11 60. जा (अ) 1/1 सवि बच्चा (बच्च) व 3/1 रयणी (रयणी)1/1 न (म)=नही सा (ता) 111 सवि परिनियतई (पहिनियात) व 3/1 प्रक प्रधम्म (अधम्म) 2/1 कुणमास्स (कुण) व 6/1 प्रफता (प्रफल) 112 वि अंति: (जा) व 3/1 पक राइमो (राइ) 112 61. ना (ज) 11 सवि बच्चा (बच्च) व 3/1 मक रयणी (रयणी) 1/1 न (प्र)नहीं सा(ता) / सवि परिनियत्तई (पडिनियत्त) व 3/1 अक पम्मं (धम्म) 211 - (म)=ही कुरामाणस्स (कुरण) व 6/1 सफला (सफल) 1/2 विनंति (जा) व 3/1 मक राइमो (राइ) 1/2 1. किसी भी कारक के लिए मूल संशा-शन्द काम में साया वा सकता है। (पिसः प्राहत मापापो का म्याकरण- पृष्ठ 517) मेरे विचार से पह नियम विपण गन्दों पर भी लागू किया जा सकता है। . 2. कमी-कमो बहुवचन का प्रयोग सम्मान प्रदक्षित करने के लिए किया जाता है। (हरमृत्यु का देवता-काल। 3. देगाथा 1 4. बा+जाति--ति (दो स्वर के मागे संयुक्त प्रसार होने पर दो सर का हस्थ पर हो जाता है) (हेम-प्राकृत-म्याकरणः 1-84) - 5. • गाया 60 देखें 6. दोघं का हस्त मात्रा के लिए। यनिका [ 81
SR No.010708
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1998
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size3 MB
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