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१४०] [ रत्नसेन-पद्मिनी गोरा वादल संवन्ध खुमाण रासो
चौपाई राघव व्यास कियो मंत्रणो, रतनसेन ने भालण तणो। 'नृपमन कोय नहीं छल भेद, खुरसाणी मन अधिको खेद 11६८11 घरभेदू विण घर नवि जाय, घरभेदू थी घर ठहराय । घर भेदं लंकागढ़ गयो, राघव घरभेदू हम कियो |६|| साह माहें पधारो राज, रतनसेन तेड़ें महाराज । आलिम साथ किया असवार, सलह संपूरित तीस हजार २५००
कवित्त चढ़यो गढ सुलतान, खान निवाब लीया संग । तीस सहस असवार, सिलह नख चख ढ़कें अंग । पडे धुस नीसाण, गिरंद चीतोड गडक्कें। । सहिर लोक खलभले, धीर छुटे चित्त धडक्कें। विड्रे रयण मेल्यो कटक, ठोड ठोड सामंत कसें। मनुख देख गयंद मेमत घटा, मयंद कपोरिस उलसें ।।२५०१।।
चौपाई आवि माहें हुआ एकठा, तव सगले दीठा सामठा। रतनसेन मन खुणस्यो सही, आयो आगण आलिम चही २५०२ नृप पण सेना सगली सार, असवारे मिलिया असवार । तुगे तुग हूआ एकठा, जाणक बादल उत्तर घटा ।। २५०३ ।।
... ..... आलिम पिण न सके आंगमी । आलिम ताम कहें सुण भूप, क्युमेलत हो कटक सरूप ॥ ४ ॥