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[ गोरा वादल कवित्त किहां सुणी पदामिनी सेसधर अंती सोहइ, सुरनर गुण गंध्रुव, देखि मुनिवर मन मोहइ । सुखिनी सवे सुरताण घरि, कोप हूउ वेजन कसइ, लावत मारि खोजा निसुणि, पतिसाह मुरके हसइ ।।२३।।
वंदण प्रतइ अलावदी, कहि सु क्यण विचार । कटारी सहिनाण लइ, राघव वेग हकारि ॥२४॥
कुण्डलीयर
आलिमसाह अलावदी, पूछइ व्यास प्रभात । सयल परीक्षा तु करइ, स्त्री की केती जाति ॥२५॥ स्त्री की केती जाति, कहि न रावव सुविचारी, रूपवंत पतित्रता, मूध सोहइ सुपियारी । हस्तनी चित्रणी कर सखिनी, पुहवी वड़ी पदमावती, इम भणइ विप्र साच वयण. आलमसाह अलावदी ॥२६॥
कवित्त
इम जंपइ सुरताण, सुनि वे राघव इक वातह, जाति च्यार की नारि, केम जांणीइ सुचित्तह । गंध रूप सदभाव, केस गति नयण निरत्ती, वयण वाणि तमु अग, कहु किशि तखत किसि भंती। हस्तिनी चित्रणी कइ संखिनी जाति तीन दीसइ घणी, पातसाह अरदास सुणि, दुनी पियारी पदमिनी ।।२७||