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________________ पुरोवचन जिन वर्धमान महावीर की उत्तरापथ की परम्परा में उनके . गणधर-शिष्य सुधर्मा से चौथे पट्टधर हुए आर्य शय्यंभव वा स्वायम्भुव (प्रायःईसा-पूर्व 375-300) । आगमिक व्याख्याकारों की ईस्वी छट्ठी शताब्दी से चली आयी परम्परा के अनुसार अत्यन्त प्रतिष्ठित आगम दशवकालिक सूत्र के वे रचयिता थे। उन्होंने उसकी रचना अपनी गृहस्थ पर्याय के पुत्र एवं तत्पश्चात् स्वशिष्य वाल मुनि, अल्पायुषी "मनक" के उपदेशार्थ की थी । दशाश्र तस्कन्ध (कल्पसूत्र) की स्थविरावलि का प्राचीनतम हिस्सा, जो आर्य फल्गुमित्र (ईस्वी 100-125) पर्यन्त पाकर ही अटक जाता है, उसमें आर्य शय्यंभव के लिये जो 'मनक पिता" का उद्बोधन किया गया है वह संभवतः उपरकथित अनुश्र ति की ओर संकेत ही नहीं, अपितु एक तरह से समर्थन भी करता है। वर्तमान में उपलब्ध दशकालिक सूत्र. यदि शोध दृष्टि से देखा जाय तो, भाषा एवं छन्दादि से और विशेष कर भीतरी वस्तु से निःशंक रूप से ईसा पूर्व की रचना है। इस रचना में जो "बाल मुनि" के लिये ही हो सकती हैं वे गाथाएं तो हमें पूरे प्रथम अध्ययना में, द्वितीय अध्ययन में कुछ, और शेष आठ अध्ययनों में इधर-उधर बिखरी हुई देखने में आती हैं । (इस विषय पर मैं अन्यत्र चर्चा कर रहा हूँ।) दशवैकालिक सूत्र का अधिकांश भाग. तो प्रौढवय के मुनियों के लिये ही है, लेकिन वह हिस्सा है बहुत ही प्राचीन । और, दशवकालिक ] [ix
SR No.010704
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages103
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size3 MB
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