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________________ पसंविभागो (मसंविभागि) 1/1 वि न (म)=नहीं है (म)= निश्चय ही. तस्स (त) 4/1 स मोक्खो (मोक्स) ||1 साहसDOver-hasty (उतावला) (Monier Williams, Sans.Eng. Dict. P. 1212 Col. II)। किसी भी कारक के लिए मूल संशा शन्द काम में लाया जा सकता है। (पिसः प्राकृत भाषामों का व्याकरण, पृष्ठ 517) । 72. निसबती [( निस)-(वत्ति) 1/2 वि] पुण (म)=इसके विपरीत जे (ज) 1/2 सवि गुरुण* (गुरु) 6/2 सुयस्थषम्मा [(सुय) +(प्रत्य)+(धम्मा)] [(सुय) वि-(अत्य)-(धम्म) 1/2] विणयम्मि (विरणय) 711 कोविया (कोविय) 1/2 वि तरित (तर) संकृ ते (त) 1/2 सवि मोहमिरणं [(मोहं) + (इणं)] ओहं (प्रोह) 2/1 इणं (इम) 2/1 सवि दुरुत्तरं (दुरुत्तर) 2/1 वि खवित्त (खव) संकृ कम्म (कम्म) 2/1 गइमुत्तमं ](गई) + (उत्तम)] गई (गइ) 2/1 उत्तमं (उत्तम) 2/1 वि गय' (गय) मूल शब्द भूकृ 1/2 अनि * किसी वर्ग विशेष का बोध कराने के लिए एक वचन मथवा बहुवचन का प्रयोग किया जा सकता है या मादर व्यक्त करने के लिए बहुवचन का प्रयोग किया जा सकता है। • किसी भी कारक के लिए मूल संशा गन्द काम में लाया जा सकता है। .(प्रा. भा. व्या. पृ. 517)। यह नियम विशेषण के लिए भी लागू किया जा सकता है। 73. प्रापारमट्ठा [(प्रायारं) + (अट्ठा)] आयारं (आयार) 2/1 अट्ठा (भट्ठा) 1/1 विणयं (विणय) 2/1 पउँने (पंउंज) व. 3/1 सक सुस्मसमापो (सुस्सूस) व 1/1 परिगिझ (परिगिज्झ) संकृ पनि वर्क (वक्क) 2/1 बहोवइ8 (अ)जैसा कि कहा गया है. प्रमिकक्षमाणो (अभिकंख) व 1/1 गुरू (गुरु) 2/1तु (अ) =तथा नासायई [(ना) + (प्रासाययई)] ना (अ)=नहीं चयनिका ] [ 67
SR No.010704
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages103
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size3 MB
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