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________________ 1/2 इंड्ढि ( इड्ढि ) 2 / 1 पत्ता (पत्त ) भूकृ 1/2 प्रति महायसा [ ( महा ) - ( यस ) 5 / 1] * • · यहाँ भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग कर्तृवाच्य में हुआ है । 'कारण' अर्थ में तृतीया या पंचमी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है । 57. तहेव ( अ ) = उसी प्रकार सुविरणीयप्पा [ ( सुविणीय) + ( अप्पा ) ] [ ( सुविणीय) वि - ( अप्प ) 1/2] लोगंसि (लोग) 7/1 नर-नारियो * (दीसंति) व कर्म 3/2 सक अनि 2 / 1 एहंता ( एह ) वकृ 1 / 2 (पत्त ) भूकृ 1 / 2 अनि महायसा£ [ (नर) - (नारी) 1/2 ] दोसंति सुहमेहंता [ ( सुहं) + ( एहंता ) ] सुहं इडिट ( इडिट) 2 / 1 पत्ता [ ( महा) - ( यस ) 5 / 1] * कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के नारीप्रो→ नारिप्रो. विभक्ति जुड़ते समय दोघं स्वर बहुधा कविता में हृस्व हो जाते हैं । (पिशल: प्रा. भा. व्या. पृष्ठ 182 ) । कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण: 3-137 ) । यहाँ भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग कर्तृवाच्य में हुमा है । £ 'कारण' अर्थ में तृतीया या पंचमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । 68. जे (ज) 1/2 सवि प्रायरिय-उवज्झायाणं * [ ( आयरिय ) - ( उवज्झाय) 6/2] सुरसावणंकरा [ ( सुस्सूसा) - (वय) - (कर) छ 1/2 वि ] तेसि (त) 6/2 सिक्खा (सिक्खा 1/2 पवति (पवड्ढ ) व 3/2 क जलसित्ता [ (जल) - ( सित्त) भूकृ 1 / 2 अनि ] इव ( अ ) - जैसे कि पायवा ( पायव) 1/2 • स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया 8 जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137 ) । * यहाँ द्वन्द्व समास के कारण बहुवचन हुआ है । यहाँ अनुस्वार का श्रागम हुआ है । (हम प्राकृत व्याकरण : 1-26 वृत्ति सहित) | समास के अन्त में 'कर' का प्रयं 'करने वाला' होता है । चयनिका ] [ 65
SR No.010704
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages103
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size3 MB
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