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________________ 5. (व्यक्ति) कैसे चले ? कैसे खड़ा रहे ? कैसे बैठे ? कैसे सोए ? किस प्रकार खाता हुआ और बोलता हुआ (नक्ति) शुभ कर्म को नहीं बांधता है ? 6. (व्यक्ति) जागरूकतापूर्वक चले, जागरूकतापूर्वक खड़ा रहे, जागरुकतापूर्वक बैठे, जागरुकतापूर्वक सोए (ऐसा रता हुना तथा ) जागरूकतापूर्वक भोजन करता हुआ (और) बोलता हुआ (व्यक्ति) अशुभ कर्म को नहीं बांधता है ।। 7. सब प्राणियों का ( सुख-दु:ख ) अपने समान ( होने) के करण ( जो व्यक्ति ) ( उन ) प्राणियों में (स्व-तुल्य श्रात्मा ) अच्छी तरह से दर्शन करने वाला (होता है), (वह) कि हुए ग्राव के कारण (तथा) ग्रात्म-नियन्त्रित होने के कारण अशुभ कर्म को नहीं बांधता है । 1 8. सर्वप्रथम ( प्राणियों की आत्म-तुल्यता का ) ज्ञान ( करो ); वाद में ( ही ) ( उनके प्रति ) करुणा (होती है) । इस प्रकर प्रत्येक ( ही ) संयत (मनुष्य) श्राचरण करता है । (प्राणि की श्रात्म-तुल्यता के विषय में) अज्ञानी (व्यक्ति) क् - करेगा ? ( वह) हित (और) ग्रहित को कैसे जानेगा ? 9. (मनुष्य) मंगलप्रद को सुनकर समझता है; ( वह) अनिष्ट कर को ( भी ) सुनकर ( ही ) समझता है; ( वह ) दोन ( मंगलप्रद श्रीर अनिष्टकर) को भी सुनकर (ही) समझत है । ( इसलिए ) ( इन दोनों में से) जो मंगलप्रद ( है ), ( वह ) उसका श्राचरण करे । 10. जो जीवों को भी नहीं समझता है, प्रजीवों को भी नही समझता है, वह जीवों और जीवों को नहीं समझता हुआ संयम को कैसे समझेगा ? चयनिका ] [5
SR No.010704
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages103
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size3 MB
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