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________________ Fatektet.ttutist.tituttt.ttrishtotstatut.ttitute १८६ कविवरवनारसीदासः । mmmmmmmmmmmmmmmmmmmomamerammmmmmmmmmmmmmmmmmm. Httkukkukkakestratakokuttt.tukuttitutekakuttakuttitutikatttitutkukkutta * एक बार कुटुम्बहीन होके पुनः गृहस्थ हो गये । इस प्रकार थोडेही दिनोंमें बनारसीदासजीके संसारमें अनेक उलट फेर हुए। आगरमें अर्थमल्लजी नामक एक सज्जन अध्यात्मरसके परमरसिक थे । कविवर के साथ उनका विशेष समागम रहता था। वे कविवरकी विलक्षण काव्यशक्ति देखकर हर्षित होते थे। परन्तु उनकी कविताको अध्यात्मकल्पतरुके सौरभसे हीन देख-ई. कर कभी २ दुःखी भी होते थे, और निरन्तर उन्हें इस ओरको आकर्षित करने के प्रयत्नमें रहते थे । एक दिन अवसर पाकर उन्हों ने पं० रायमलजीकृत बालावबोधटीकासहित नाटकसमयसार ग्रन्थ कविवरको देकर कहा आप इसको एक बार पढ़िये । और सत्यकी खोज कीजिये । कविवरने चित्त लगाकर समयसारका पाठ करना आरंभ कर दिया। एक बार पूरा पढ़ गये, पर संतोष न हुआ अतः फिर पढ़ा। इस प्रकार वारंवार पढ़ा और भाषार्थ मनन । किया, परन्तु एकाएक आध्यात्मिक पेच समझ लेना सहन नहीं है। विना गुरूके अध्यात्मका यथार्थ मार्ग नहीं सूझ सका । क्योंकि विलक्षणदृष्टि पुरुष भी अध्यात्ममें भूलते और चक्कर खाते देखे । जाते हैं । कविवरकी बुद्धि इस परम आध्यात्मिक प्रकाशको देख Patixksikutruttituttituttitutntukskatrkutekakri-krkukrtikakakakikikatinkskskit-kukt.k. पंडित रायमल्लजी भाषाके बहुत प्राचीन लेखक प्रतीति होते से हैं। पं० दुलीचन्दजीने इन्हें तेरहवींशताब्दीके लगभगका बतलाया है। समयसार टीका, प्रवचनसार टीका, पंचास्तिकाय टीका, पनामृत टीका, द्रव्यसंग्रह टीका, सिन्दूरप्रकर टीका, एकीभाव टीका, श्रावकाचार भकामरकथा, भक्तामर टीका, और अध्यात्मकमल मातेड आदि ग्रन्थोके प्रभावशाली रचयिता हैं । खेद है कि इनमेसे किसी भी अन्यको हमने । नहीं देखा।
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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