SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Stotatitutetituttituttikottitkutkettrktutkukkutttatutekadekitkut.tituttitute Firstotkettet.tttitutstotuitattatutatut tetatstatutors कविवरबनारसीदासः। Hearn mmmm. .. ...... इस ही समय ईति विस्तरी। परी आगरेपहिली मरी। जहां तहां सब भागे लोग | परगट भया गांठका रोग ॥ निकसै गठि मरै छिनमाहिं । काहुकी वसाय कछु नाहि चूहे मरें वैद्य मर जाहिं। भयसों लोग अन्न नहिं खाहि मरीसे भयभीत होकर लोग भाग २ के दूर २ के खेटों और जंगलोंमें जा रहे । बनारसीदासजी भी एक अजीजपुर नामके ग्राममें एक ब्राह्मण मालगुजारके यहां जाके रहने लगे। मरीकी निवृत्ति ३ होनेपर वे अपने मित्र 'निहालचन्द, जीके विवाहको अमृतसर गये, और वहांसे लौटकर फिर आगरेमें रहने लगे । माताको भी जौनदिनके अरसेमें सात अंग्रेजोंकी मृत्यु हो गई, लेगमें फेंचने के बाद इन रोगियोंमेंसे कोई भी २४ घंटेसे अधिक जीता नहीं रहा, बहुतोंने तो १२ घंटमें ही रास्ता पकड लिया।" सन् १६८४ में औरंगजेब अबादशाहके लइकरमे भी लेगने कहर मचाया था, ऐसा इतिहाससे पता * लगा है। बनारसीदासजीके नाटकसमयसार ग्रन्थमें भी लंगका पता लगता है। उसमें बंधद्वारके कथनमें जगवासी जीवोंके लिये कहा है__ "घरमकी बूझी नहीं उरझे भरम माहि नाचि नाचि मर जाहिं मरी कैसे चूहे हैं * पाठकोंको जानना चाहिये कि, उस समय लेगको मरी कहते थे। यद्यपि महामारी (हैना) को भी मरी कहते हैं, परन्तु चूहोंका मरना। यह प्लेगका ही असाधारण लक्षण है, हैजाका नहीं। १ लेगका एक विशेष भेद भी है, जिसमें गांठ नहीं निकलती है केवल ज्वर होता है और ज्वरके पश्चात् मृत्यु । वैद्यक ग्रन्थकाराने प्लेगको "प्रन्थिक सन्निपात” बतलाया है। यह असाध्य रोग है। . Stotkekatuitictetratakiathkutstakuttekickartiketstatuttitutetstectukrketert:
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy