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________________ नग्रन्थरनाकरे mketakindikakkarx.stt..*-*-----* - - हम यहीं प्राण दे देखेंगे। उनके इन दयायोग्य वचनोंसे हमलोग से दुखी हो गये । दया आ गई । ब्राह्मणोंका क्लिाप और नहीं मुना गया। हम दोनों (महेश्वरी-बनारसी ने मिटके २५४ रु० वित्राको देकर संतुष्ट किया । वासण आशिय देते हुए विदा हो गये । "ब्राह्मण गये अशीष दै, भये वणिक निप्पाप, Frtant.katuttitutitutetotkotikikiketaketitutitutekt.ketttttitutatukutteketatist.tta इस प्रकार मुगलाई के एक राजकीय चरित्रका वर्णन समाप्त है। हुआ। जिस समय आगरा बहुत निकट रह गया था, किसी पथि कने वनारसीदासजीको वह वन खबर सुनाई, जिसके सुनने लिये वे आजन्म प्रस्तुत नहीं थे। और जिसके सुनने के लिये उनका कोमल हृदय सर्वथा असमर्थ था, परन्तु आनेवाली आपॐदाय कहकर नहीं आती, अचानक आ पाती है। पथिकने कहा तुम्हारे मित्र नरोचमका परलोक हो गया। इसके अतिरिक्त बना. रसी और कुछ न सुन सके । उनका सुन्दर शरीर तत्काल धराशायी हो गया, विचारशक्ति चली गई, वे मूल में आविर्भूत हो गये। उनके साथी इस दशाम बड़े बाकुल हुए, जलसेचनादि टपायोंमे । उनकी मूर्छा-निवृत्ति की । मूर्छानिवृत्ति के साथ शोकको ज्वाला उनके हृदयमें धधक उठी, जिसके कारण मुंहमसे संतस उच्यास निकलने लगे, और नेवासे बाप्पखरूप जलधारा निकलने लगी। विषादयुक्त बदन-विनिर्गत हाय मित्र! हाय मित्र ! हाय मित्र! कहां गये। आदि शब्द सुननेवालोंकी आंखोंमेंस भी दो चार बूंद आंसुओंके निकालते थे। बड़ी बुरी अवस्था हो गई। लोगोंने व्या लों समझा बुझाकर उन्हें आगरेमें ठिकानेपर पहुंचाया । वहां stt.ketrkuttitstetetitiktatist.tituttitutictictit: t.kratuteta .kettet.ttitstatute
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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