SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ P जैनग्रन्थरताकरे . मेरे घरको आप अवश्य ही पवित्र करें। ऐसा कहकर चले गये। और दूसरे दिन फिर लिबानेको आ पहुंचे । बनारसीदासजी साथ हो लिये, इधर श्वसुर महाशय अपने एक नौकरको गुसरीतिसे आज्ञा दे गये कि, तू इस मकानका भाडा वगैरह चुकाकर और डेरा डंडा उठाकर अपने घर पीछेसे ले आना । नौकरने आज्ञाकी । पूरी २ पालना की । भोजनोपरान्त बनारसीदासजीपर जब यह बात प्रगट हो गई, तब श्वसुरने हाथ जोडके कहा कि, इसमें आपको दुःखी नहीं होना चाहिये । यह घर आपका ही है, आप यदि प्रसन्नतासे रहे, तो मैं अत्यन्त प्रसन्न होऊंगा। संकोची बनारसीदासजी कुछ कर न सके और श्वसुराळ्यमें रहने लगे । दो महीने । बीत गये । व्यापार करनेकी चिन्ता रात्रि दिन सताती रही, निदान घरमदास जौहरीके साझेमें व्यापारका प्रयत्न किया । जसू और अमरसी दो भाई थे, यह जातिके ओसवाल थे। अमरसीका पुत्र धरमसी अथवा धरमदास जौहरी था । घरमसीका चालचलन अच्छा नहीं था, थोडीसी उमरमें ही उसके पीछे अनेक व्यसन लग चुके थे । इन व्यसनोंसे पीछा छुडानेके लिये ही वनारसी. दासजीकी संगति उसके वापने तजवीज की और निरन्तर समागम रखनेके लिये ५००) की पूंनी देकर दोनोंको सांझी बना दिया। ___ दोनों साझी माणिक, मणि, मोती, चुनी आदि खरीदने और भवचने लगे। कुछ दिनोंमें जब वनारसीदासजीन थोडासा द्रव्य क १-२ ये दोनों नाम कच्छी तथा गुजरातीसे जान पड़ते हैं । उस समय आगरा राजधानी थी, इससे वहां भिन्न २ प्रान्तवालाने आकर दूकाने की थीं। । t.ttituttotketst.tituttitutet ketaketituttitutet.ttitutni.ki.kutst.titutikattel - - - -- -
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy