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________________ १८. कविवरबनारसीदासः । kisitststatititiktar.ki. r छाया | जाल काम कर गया। बनारसी फांस लिये गये । सन्या-* सीने रंग जमाया कि मेरे पास एक ऐसा मंत्र है कि, यदि कोई उसे एक वर्षतक नियमपूर्वक जप, तथा मिसीपर प्रगट न करे, तो ॐ साल बीतनेपर गृहद्वारपर प्रतिदिन एक सुवर्णमुद्रा पड़ी हुई पात्र । इश्कबाजोंको द्रव्यकी बहुत आवश्यकता रहती है । इस कल्पद्रुम मंत्रकी बातसे उनकी लाल टपक पड़ी । लगे सन्यासीकी सेवा सुश्रुषा करने, उधर सन्यासी लगा पैसे ठगनेकी बातें बनाने । निदान भरपूर द्रव्य खर्च करके सन्यासीसे मंत्र सीख लिया, और तत्काल ही जप करना प्रारंभ कर दिया । इधर सन्यासीजी मौका पाकर नौ दो ग्यारह हो गये । मंत्र जपते २ एक वर्ष बडी ॐ कठिनतासे पूर्ण हुआ । प्रातःकाल ही लान ध्यान करके बनारसी महाशय बडी उत्कंठासे प्रसन्न होते हुए गृहद्वारपर आये । लगे जमीन सूंघने, परन्तु वहां क्या खाक पडी थी । आशा बुरी होती है, सोचा कि कहीं दिन गिनने में मेरी भूल न हो गई हो, अस्तु एक दो दिन और सही । और भी चार छह दिन सिर पटका परन्तु मुहर तो क्या फूटी कौडी भी नहीं मिली । सन्यासीको * तरफसे अब कुछ २ आंख खुली । आपने एक दिन यह अपनबीती गुरु भानुचंद्रजीको कह सुनाई । गुरूजीने सन्यासीके छल कपटोंको विशेष प्रगट कर कहा, तब आप सचेत हुए। थोड़े दिन पीछे एक जोगीने आकर अपना एक दूसरा ही रंग जमाया। एक बार शिक्षा पा चुके थे, परन्तु भोले बनारसीपर फिर भी रंग जमते देर न लगी ! जोगीले एक शंख तथा कुछ पूजनके उपकरण दिये और कहा कि यह सदाशिवकी मूर्ति है। इसकी पूजासे महापापी भी शीघ्र ही शिव (मोक्ष) प्राप्त करता kuckTICE inketitutikristiriztukikikikeketstitutetrikakikrit
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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