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________________ +444+. 4 AMANAMA Alert ४४ कविवरवनारसीदासः। Wrinkitutekat.kikikikikasexrketikkiesnkrt.tutikskrinkot.kutakitrkut.ke.kukkutekrtixexetikotuki चोरै चूनी माणिक मनी। ___ आने पान मिठाई धनी ॥ भेजे पेशकशी हित पास। ____ आप गरीब कहावै दास ॥ १७२ ॥ हमारे चरित्रनायक जिस समय इस अनंगरंगमें सराबोर हो रहे थे, उसी समय जौनपुरमें लइतरगच्छीय यति भानुचन्द्र जीका आगमन हुआ । यति महाशय सदाचारी और विद्वान् थे भी उनके पास सैकडों श्रावक आते जाते थे। एक दिन बनारसीदा सजी अपने पिताके साथ, यतिजीके पास गये । यतिजीने इन्हें सुबोध देखकर स्नेह प्रगट किया । बनारसीदास प्रतिदिन आने जान लगे। पीछे इतना स्नेह बह गया कि, दिनभर यतिक पास ही पाठशालामें रहने लगे । केवल रात्रिको घर आते थे। यतिके पास पंचसंधिकी रचना, अष्ठौन, सामायिक, पडिकोण (प्रतिक्रमण), छन्दशास्त्र, श्रुतबोध, कोप और अनेक स्फुटलोक आदि विषय कंठस्य पढे । आठ मूलगुण भी धारण कर लिये, परन्तु इश्क नहीं छुटा-यथा कचहूं आइ शब्द उर धरै। कवई जाइ आसिखी करै। Hukrt.t.tointakentstatutekitntntnx.sartatut.tti-Exist-tak-at-Erkirtatuteketrnakwtikatta १ यति भानुचन्द्रजी श्वेताम्बर थे, ऐसा जान पडता है। क्योकि खडतरगच्छ श्वेताम्बरसम्प्रदायका ही है, और अष्टान आदि विषय भी मुख्यतासे श्वेताम्बरीय हैं, जो कविवर ने उनके पास से पढे थे। परन्तु जान पडता है कि, उस समय दिगम्बर वेताम्बरोंमें आजकलके समान शनुभाव नहीं था। HTTERTAINMENT
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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