________________
e
आ नमः सिद्धयः
MExt-at-krkrartottakinkukrk-krtit-t-trinti-trkatitut
उत्थानिका।
- -- * कवितायै नमस्तस्यै यद्रसोल्लासिताशयाः ।
कुर्वन्ति कवयः कीर्तिलतां लोकान्तसंश्रयाम् ॥ भाषासाहित्यके आज तक जितने अन्य प्रकाश हुए हैं, उनका अधिकांश केवल शृंगाररमसे ओतपोत मरा हुआ है । और नायकामदके अन्योंकी तो गिनती करना भी कठिन है। इन ग्रन्याम विरही और चिरहिणियोंका रोना कुलटाकि कटाक्षोंकी नोक झोंक, अभिसारिकाआके संकेतस्यान, विदन्याओंनी चारक्रियाचातुरी और संयोगियोंकी " लपटाने दोज पटताने परे की कथाओंका ही पिटपेषण देखा जाता है । रामयी उन्नति होनमें साहित्य एक प्रधान कारण माना गया है, परन्तु हम नहीं कह सक्त कि, ऐसे साहित्यसे राष्ट्रको क्षतिके अतिरिक्त क्या
लाभ होता होगा। भाषासाहित्यम गोस्वामी तुलसीदासजी, या । सूरदासजी, सुन्दरदासजी, भूपणली आदि चार छह श्रेष्ट कवियों । अन्य यदि प्रकाशित नहीं हुए होते तो कहना पडता कि, मापा । ने कवि भंगारके अतिरिक्त इतर विषयोंमे कार थे, अर्थात् शांतकरणादि रसोंकी कविता करना एक प्रकारने जानते ही नहीं थे। आजकल के अधिकांश कवियोंकी भी यही दशा है। उनकी
tituttitutttt.tti.xuttitutkutt.sut.kettt.tt.tourt.tnt.
t
tibt
"उस कविता देवीको नमस्कार है, जिनके भनुरागर्ने यदिराचित्त होकर कविगण स्वादि फलोंकी देनेवाली वीतिलताशे लोरम *अन्तका आनय करनेवाली अर्थान् लोक्यव्यापिनी करते हैं । (य
खिलकचन्पुमहाकान्ये.)
"
M