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________________ t stakekat.kettrintukaitrkut.kotkkakkakktutekute kuttakat Postatute tutothkatthtakistast.ttatutituttatutotke ११७६ जैनग्रन्थरत्नाकरे ___ अथ नामनिर्णयविधान लिख्यते. . दोहा। काहू दिन काहू समय, करुणाभाव समेत । सुगुरु नामनिर्णय कहै, भविक जीव हितहेत ॥ १ ॥ जीव द्विविधि संसारमें, अथिररूप थिररूप | अथिर देहधारी अलख, थिर भगवान अनूप ॥ २ ॥ __ कवित्त (३१ वर्ण) जो है अविनाशी वस्तु ताको अविनाशी नाम, विनाशीक वस्तु जाको नाम विनाशीक है। फूल मरै बास जीव यह भ्रमरूपीवात,.. दोऊ मेरै दोऊ जीवे यह बात ठीक है ॥ अनादि अनंत भगवंतको सुजस नाम, __ भवसिंधु तारण तरण तहकीक है। .. अवतरै मरै भी घरै जे फिर फिर देह, तिनको सुजस नाम अथिर अलीक है ॥ ३ ॥ ... दोहा। थिर न रहै नर नाम की, 'जथा कथा जलरेख । एते पर मिथ्यामती, ममता करें विशेख ॥ ४ ॥ वित्त. जगमें मिथ्याती जीव भ्रम करै है सदीव, अमके प्रवाहमें बहा है आगें बहेगा। नाम राखिवेको महारंभ करै दंभ करै, यो न जानै दुर्गतिमें दुःख कौन सहेगा ॥ kaakirtiktak kuttitutkukkuttek.kakutatutek kukatukkut.tk chn tetatutkukkukutrkutteke katuitiktatakikatta +SHRA pronनल +++
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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