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________________ बनारसीविलासः ज्ञानकी अवस्था दोऊ निश्चय न भेद कोऊ, व्यवहार भेद देव देवी यह व्यंग है । ऐसो साध्य साधक स्वरूप सूधी मोखपंथ, संतनको सत्यारथ मूढ़नको डिंग है ॥ २ ॥ जाको भौनभवकूप मुकुट विवेकरूप, अनाचार रासभ आरूढदुति गूझी है । जाके एक हाथ परमारथ कलश दूजे, हाथ त्याग शकति बोहारी विधि बूझी है । जाके गुणश्रवण विचार यहै वासी भोग, औपन भगतिरसरागसों अरूझी है || सो है देवी शीतला सुमति सूझे संतनको, दुबुद्धि लोगनको रोगरूप सूझी है ॥ ३ ॥ कृपसों निकस जबभूपर उदोत भई, तब और ज्योति मुख ऊपर विराजी है । - भुजा भई चौगुणी शकति भई सौगुणी, - लजाय गए औगुणी रजायछिति छाजी है || कुंभसों प्रगट्यो नूर, रासभसों भवो सूर, सूप भयो छत्रसों बुहारी शस्त्र राजी है। י* ऐपन को रंगसो तो कंचनको अंग भयो, छत्रपति नामभयो वासी रीति ताजी है ॥ ४ ॥ १७३
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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