SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Hokkkkkkkkuttukkakakikikikuttitutekutattut-tutott.titute बनारसीविलासः १५५ । * अष्टकर्मसों मिडै अकेला । महारुद्र कहिये तिहिं वेला ॥ मनकामना रहै नहिं कोई । कामदहन कहिये तब सोई ॥२०॥ मववासी भवनाम घरावै । महादेव यह उपमा पावै ॥ आदि अन्त कोई नहिं जाने। शंभुनाम सब जगत वखानै२१ मोहहरण हर नाम कहीजे। शिवस्वरूप शिवसाधन कीजे ॥ तज करनी निश्चयों आवै। तव जगभंजन विरद कहावै २२ । विश्वनाथ जगपति जग जाने। मृत्युंजय तम मृत्यु न माने ॥ शुक्ल ध्यान गुण जब आरोहै। नाम कपूरगौर तव सोहै ॥२३॥ इहिविधि जे गुण आदरै, रहै राचि जिहँ ठाव । जिहँ जिहँ मारग अनुसरै, ते सव शिवके नाँव ॥२॥ नांव जथामति कल्पना, कहूं प्रगट कहुं गूढ़। गुणी विचारै वस्तु गुण, नाव विचारै मूढ़ ॥ २५ ॥ मूढ मरम जानै नहीं, करै न शिवसों प्रीति । पंडित लखै वनारसी, शिवमहिमा शिवरीति ॥२६॥ इति शिवपञ्चीसी. PRILettituttitutiketakettituttitutitutkukuntukutekutiktuttkukukkukkuXRAKAR अथ भवसिन्धुचतुर्दशी लिख्यते. जैसे काहू पुरुषको, पार पहुंचवे काज । __मारगमाहि समुद्र तहां, कारणरूप जहाज ॥ १ ॥ । तैसें सम्यकवंतको, और न कछू इलाज । भवसमुद्रके तरणको, मन जहानसों काज ॥ २॥ ।
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy