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________________ Gatit tekitatttititatitikitttttttttttttttt बनारसीविलासः नीम रसन परसे नहीं, निर्विष तन जब होय । ___ मोह घटे ममता मिटै, विषय न वांछ कोय ॥ ७ ॥ ज्यों सछिद्र नौका चढ़े, वूडइ अंघ अदेख । ___ त्यों तुम भवजलमें परे, विन विवेक घर भेख ॥ ८ ॥ जहां अखंडित गुण लगे, खेवट शुद्धविचार । ___ आतम रुचि नौका चढे, पावहु भव जल पार ॥ ९ ॥ ज्यों अंकुश मानै नहीं, महामत्त गजराज । त्यों मन तृष्णा, फिरे, गणै न काज अकाज ॥१०॥ ज्यों नर दाव उपावकै, गहि आने गज साधि । त्यों या मनवश करनको, निर्मल ध्यान समाधि ॥११॥ तिमिररोगसों नैन ज्यों, लखै औरकी और। ____ त्यों तुम संशयमें परे, मिथ्या मतिकी दौर ॥ १२ ॥ ज्यों औषध अंजन किये, तिमिररोग मिट जाय । त्यों सतगुरुउपदेशतें, संशय वेग विलाय ॥ १३ ॥ जैसे सब जादव जरे, द्वारावतिकी आग। त्यों मायामें तुम परे, कहां बाहुगे भाग ॥ १४ ॥ दीपायनसों ते वचे, जे तपसी निर्गन्ध । तज माया समता गहो, यहै मुकतिको पंथ ॥ १५ ॥ ज्यों कुधातुके फेटसों, घटबढ़ कंचनकांति। पापपुण्य कर त्यों भये, मूढातम बहु भांति ॥ १६ ॥ KutttituttitutituttituttituttitutitiktikuututitutiktitutitutitutertekuktARH
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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