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________________ + + + + + + + + ३११२ जैनग्रन्थरत्नाकरे Petituttituttit Httaket tukšttittikuttet, kattitutkitetutuketttet tittat ketitstuttututkittttt भिन्न २ लक्षण लखे, प्रगट दुईकी भांति । एक लिये उद्वेगता, एक लिये उपशांति ॥ २८ ॥ कच्छपकीसी सकुच है, वक्र तुरगकी चाल । अंधकारकोसो समय, कंपरोगके भाल ॥२९॥ बकरकुंदसी उमँग है, जकरबन्दकी चाल । मकरचांदनीसी दिपै, अकररोगके माल ॥ ३० ॥ तमउदोत दोऊ प्रकृति, पुद्गलकी परजाय । भंदज्ञान बिन मूढ़ मन, भटक भटक भरमाय ॥ ३१ ॥ दुहूं रोगको एक पद, दुईसों मोक्ष न होय । बिनाशीक दुईकी दशा, विरला झै कोय |॥ ३२ ॥ कोऊ गिरै पहाड़ चढ़, कोऊ वू कूप । मरण दुहको एक सो, कहिवेको द्वै रूप ॥ ३३ ॥ भववासी दुविधा धेरै, तातै लखै न एक। रूप न जानै जलधिको, कूप कोषको भेक ॥ ३४ ॥ माता दुईकी वेदनी, पिता दुईको मोह । दुहु वेडींसो वंधि रहे, कहवत कंचन लोह ॥ ३५॥ जाति दुईकी एक है, दोय कहै जो कोय । गहै आचरै सरदहै, सुरवल्लभ है सोय ॥ ३६॥ जाके चित जैसी दशा, ताकी तैसी दृष्टि । पंडित भव खंडित करै, मूढ वढावै सृष्टि ।। ३७ ।। इति कर्म छत्तीसी. utiktitutix.kutakitatuk-XXXXXZketertekutttitutent-tekatukuters - - Synoycomकारकरकका लक क + + + + + + + जमकताम्लालNENT + + + + + +
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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