SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 251
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बनारसीविलासः 44 अथ साधुवन्दना लिख्यते. दोहा। श्रीजिनमापित भारती, सुमरि आन मुखपाठ । कहीं मूल गुण साधुके, परमित विंशतिआठ ॥ १ ॥ पंचमहावत आदरन, समति पंच परकार । प्रवल पंच इन्द्रिय विजय, पट अवशिक आचार ॥२॥ * भूमिशयन मंजनतजन, वसनत्याग कचलोच । एकवार लघुअसन थिति असन दंतवन मोच ॥ ३॥ चौपाई। थावर जन्तु पंच परकार । चार भेद जंगम तन धार । जो सब जीवनको रखपाल । सो सुसाधु बन्दहुं तिरकाल |2| संतत सत्य वचन मुख कहै । अथवा मानविरत पर है। * मृपावाद नहिं बोले रती । सो जिन मारग सांचा जती ॥५॥ कौड़ी आदि रतन परजंत । घटित अयट धनभेद अनंत ॥ भी दत्त अदत्त न फरस जोय । तारण तरण नुनीश्वर सोय ॥६॥ पशु पंखी नर दानव देव । इत्यादिक रमणी रति सेव ॥ भी तबहिं निरन्तर मदन विकार । सो मुनि नमहुँ जगत हिनफार द्विविधि परिग्रह दशविधि जान । संख असंन्ख अनन्त बन्नान : सकल संगतज होय निराश सो मुनि लेह मोक्ष पदवास ॥ ८ ॥ Bantattratrntvt.dikuttrintukkrt.ttttitukkaket-titutitutekrt.trint.antrkkk.ketrail 4.TAM राईभोजन करना. HATRAPATI - . - . . . . . - . . .. . . . . .
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy