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________________ 大大・大・大・大・大・大・大・大・大・大・大・・・いさいさいさいさいおまけ १२६ जैनग्रन्थरताकरे - ४vra - - - अथ कल्याणमन्दिरस्तोत्र भापानुवाद. दोहा Hott.tti.kkrt.ttkukkakestatutt.tt.tketikot.kukukukt.kuttitutedkakuttitatutikkk परमज्योति परमातमा, परमज्ञान परवीन । बंदों परमानंदमय, घट घट अंतरलीन ॥ १ ॥ चौपाई । (१५ मात्रा.) निर्भयकरन परम परधान । भवसमुद्र जलतारण जान ।। शिवमन्दिर अघहरण अनिन्द । वन्दहुं पासचरणअरविन्द ॥२॥ १ कमठमानभंजन वरवीर । गरिमासागर गुणगंभीर ॥ सुरगुरु पार लहें नाहिं जालु । मैं अजान जंपों जस ता॥३॥ प्रभुखरूप अति अगम अथाह ! क्यों हमसे इह होय निवाह ज्यों दिनअंध उलूको पोते । कहि न सके रविकिरनउदोत . मोहहीन जानै मनमाहिं । तोउ न तुमगुण बरणे जाहिं ॥ प्रलयपयोधि करै जल बौन । प्रगटहिं रतन गिनै तिहि कौन५ । तुम असंख्य निर्मलगुणखानि । मैं मतिहीन कहों निजवानि। . ज्यो बालक निज बांह पसार । सागरपरिमित कहै विचार ६ जो जोगीन्द्र करहिं तप खेद । तउ न जानहिं तुमगुणभेद ॥ भगतिभाव मुझ मन अमिलाख ।ज्यों पंखी बोलहिं निज भाख तुम जसमहिमा अगम अपार । नाम एक त्रिभुवन आधार | आवै पवन पद्मसर होयै । ग्रीषमतपत निवारै सोय ॥ ८॥ htent.titut.t.ttitutkukkutst.titutituttik-Trtistsit: १ बच्चा. २ वमन. ३ पद्मसरोवरको स्पर्श करके. PREPART - + + Yiryayाल + + - YYY + + + • Vrayama + + + + +
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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