SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ attitatuttitatistattatut-tatt krteristianitation २१२४ जैनग्रन्थरताकरे द्वितिय दर्शनावरणीकर्म । थिति उत्कृष्ट कहों मुन मर्म ॥ कोडाकोडी तीस समुद्र । एकमुहरतकी थिति क्षुद्र ॥ ५९॥ तीजा कर्म वेदनी जान | कोडाकोडीतीस बखान । है यह उत्कृष्ट महाथिति जोय । जघन मुहरतबारह होय ॥३०॥ चौथा महामोह परधान । थिति उत्कृष्ट कही भगवान ॥ सागरसत्तरकोडाकोडि । लघुथिति एकमुहूरत जोडि ॥६॥ पंचम आयु कही जगदीस | उत्कृष्टी सागर ततीस ॥ थिति जघन्य मुमुहरतएक। यो गुरु कही विचार विवेका|६२ छट्टा नामकर्मथिति कहीं। कोडाकोडि वीस सरदहों ॥ सागर यह उत्कृष्टविधान । आठमुहूर्त जघन्य बन्धान ।। ६३॥ गोत्रकर्म सातवां सरीस । उत्कृष्टी थिति सागरवीस ॥ कोडाकोडिकाल परमान । लघुथिति आठ मुहूरतमान ॥ ६॥ * अष्टम अंतराय दुखदानि । उत्कृष्टी थिति कहाँ वखानि ॥ * सागरकोडाकोडी तीस । लघुथिति एकनुहूरत दीस ॥ ६५ ॥ वरनी आठों कर्मकी, । थिति उत्कृष्ट जघन्य ॥ । बाकी मध्यम और थिति, । ते असंख्यधा अन्य ॥६६॥ अब वरनों पल्योपमकाल | तथा सागरोपमकी चाल ॥ कूपभरे जे रोम अपार । ते वरने नाना परकार ॥ ६७ ॥ पल्योपमके भेद अनेक । तातें यहां न वरना एक ॥ जोजन कूप रोमकी बात । कही जैनमतमें विख्यात ॥ ६८॥ atttitutikkukkuttitutiktak.tutettikretatrkut.k.k.krt.titut-ttitutitut.tt.kkkkar statut-trt-t-tstetntatuirt-t-tiri-t=trt-intet-tat-tet-t-Trt-2-trikntatistat.txtstrict katta
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy