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________________ - + + + + 4 . P . .. TVA M. Amwwwmarwa नwwwwnaam arketit-kutekt.t.tt.ktrkutek-tret.tittatutt.ket-ttkrt.totket-taketitititikta petitlettttttisistartist- titi बनारसीविलासः १२१ १ दोहा। द्विविधिगोत्र द्वय वेदनी । आयु चाराविधिजानि ।। मिल तिरानये नाम की एकोत्तरशत वानि ॥ ३१ ॥ चौपाई। जे घातहिं सब आतमदव । ते ही कहीं घातिया सर्व ॥ * जे कछु घात करहिं कछु नाहिं । देशयातिया ते इन माहिं ॥३२॥ जे न करहिं आतमवल घात । ते अपातिया कहीं विख्यात ॥ अब सुन पुण्यपापके भेद । भिन्न भिन्न सब कहो निवेद ३३ * इक सातावेदनी स्वभाव । नरकआयु विन तीनों आव ॥ * ऊंचगोत्र मानुपगति भली । मानुपआनुपूरवी रली ॥ ३४ ॥ सुरगति सुरानुपूरवि जान । जात पँचेन्द्री एक वखान ॥ पंच शरीर पंच संघात । बंधनसहित पंचसंगात ॥ ३५ ॥ * अंग उपंग तीनविधि भास । विंशति वर्ण गंध रस फास ॥ पहिला समचतुरन सँठान ! वनवृपभनाराच बखान ॥ ३६॥ भली चाल आतप उद्योत । पर परघात अगुरुलधु होन ॥ सास उसास प्रतेक प्रवान । त्रस बादर पर्यापन जान ॥३॥ थिर शुभ शुभग मुखर आदेय । जसनिर्माण तीर्थकर धेय ॥ 7 पुण्यप्रकृतिकी अडसट वान ! पापप्रकृति अब यही बयान३८ ॥ सर्वघातियाकी इकवीस | देशपातिवादी छन्नीस ॥ ये सैतालिस प्रकृती कहीं। बाकी और कहाँ जो रहीं ॥३॥ T . . .
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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