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________________ క +..4444 +- ++ 222A - - - - D - - - - - -- - - e rtaint.tranthi th बनारसीविलासः ५ जो वर्ण प्रकृति जाके उदोत । ताको गरीर तिह वर्ण । ॐ रस नाम प्रकृति वारमी जान। सो पंचभेद विवरण बखान ७४ * का मधुर तिक्त आमल कपाय । रसउदय रसीली होय काय जाको जो रस प्रकृती उदोत। ताके तन तेसो खाद होत ७५. है तेरही प्रकृति गँधमयी होय । दुर्गध मुगन्ध प्रकार दोय ॥ जो जीव जो प्रकृति कर बंध । तिह उदय तालु तन सोइ गंध७६ अब फरस नाम चौदवीं बानि । तिस कहों आठ शाखा वग्वानि । * चीकनी रुक्ष कोमल कटोर । लघु भारी शीतल तल जोर ॥७७॥ दोहा। प्रकृति चीकनीके उदय, गहै चीकनी देह । रूखी प्रकृति उदोतसों, रुखीकाया गेह ॥ ७८ ॥ कठिन उदयसो कठिन तन, मृदु उदोत मृदु अंग। तपतउदयसों तपततन, शीतउदय शीतंग ॥ ७९ ॥ पद्धरि छंद। जह भारी नाम परकृति उदोत । तहँ भारी तनधर जीव होत ॥ लघुमकृति उदयधर जीव जोय। अति हई काया धेरै सोय८० ए पिंडप्रकृति दशचार भाखि । इनहींकी पैंसठ फही सास्ति । म अब अठ्ठावीस अपिण्ड ठानि । तिनके गुणरूप कहों वखानि८१ भी जब प्रकृति अगुरुलघु उदय देय। तब जीव अगुरुलघु तन घरेय में उपघात उदय सो अंग व्यापाजासों दुख पावे जीय आप॥८॥ attrtet.net.ket-kit-kittitrkut.kett.tttt.ttitutix.tattutituttituteketituttar i ttart-attitutteristatata
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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