SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ M PANAVN सोरठा। t.ttitutkukkukkutakekekat.kot.kuttitute १११२ जैनग्रन्थरलाकरे ते तिराणवै कई वखान । पिंड अपिंड वियालिस जान ॥ प्रथमपिंड प्रकृती गतिनाम । सुर नर पशु नारक दुखधाम ।। ४४, सुरगतिसों सुर गेह, नरशरीर नरगति उदय । पशुगतिसों पशुदेह, नरकवसावै नरक गति ॥ ४५ ॥ चौपाई। चहुंगति आनुपूरबी चार । द्वितिय पिंड प्रकृती अवधार ॥ मरण समय तज देह वकीय । परभव गमन करै जब जीव ॥४६ आनुपूरवी प्रकृति पिरि । भावीगतिमें आने घेरि ।। आनपूरवी होय सहाय । गहै जीव नूतन परजाय ॥ १७ ॥ तृतिय प्रकृति इन्द्रिय अधिकार । इग दुग तिग चदु पंच विचारा ॐ फरसरसन नासा दृग कान । जथाजोग जिय नाम बखाना॥४८॥ ॐ तन इन्द्रिय धारै जो कोय | मुख नासा हग कान न होय ॥ सो एकेन्द्रिय थावर काय। भूजल अगनि वनस्पति वाय ॥४॥ जाके तन रसना द्वय थोक । संख गिडोला जलचर जोक ॥ इत्यादिक जो जंगम जन्त । ते द्वै इंद्री कहै सिद्धन्त ।। ५० ॥ जाके तन मुख नाक हजूर । धुन पिपीलिका कानखजूर ॥ ३ इत्यादिक तेइन्द्रिय जीव । आंख कानसों रहत सदीव ॥ ५१ ॥ जाके तन रसना नाशा आंखि । विच्छु सलभ टीड अलि माखि इत्यादिक जे आतमराम । ते जगमें चौइंद्री नाम ॥ ५२ ॥ देह रसन नासा हग कान । जिनके ते पंचेद्री जान | सुनर नारकी देव तिरजंच । इन चारहुके इन्द्री पंच ।। ५३ ॥ Fattituttt.int.ketrituttitutntukutekutitutitutkuttextitutkukutstatitukrt.tituttest ettetetrtetrte
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy