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________________ बनारसी विलासः दोहा। ये बासठ विधि जीबके, तनसम्बन्धी भाव | तज तनवृद्धि, बनारसी, कीजे मोक्ष उपाव ॥ २८ ॥ इति बासर मार्गणा विधान. ww १०७ अथ कर्म प्रकृतिविधान लिख्यते. वस्तुछन्द | परमशंकर परमशंकर, परमभगवान परवा अनादि शिव, अज अनंत गणपति विनायक | परमेश्वर परमगुरु, परमपंथ उपदेशदायक ॥ इत्यादिक बहु नाम घर, जगतबंध जिनराज । जिनके चरण बनारसी, बंदै निजहितकाज ॥ १ ॥ दोहा । नमो केबली बचन, नम आतमाराम । कहीं कर्मकी प्रकृति सव, भिन्न भिन्न पद नाम ॥ २ ॥ चौपाई. (१५ मात्रा) एकहि करम आठविधि दीस । प्रकृति एकसी अड़तालीस || तिनके नाम भेद विस्तार | वरणहुं जिनवाणी अनुसार ॥ ३ ॥ प्रथमकर्म ज्ञानावरणीय | जिन सत्र जीव अज्ञानी की ॥ द्वितिय दर्शनावरण पहार । जाकी ओट जलन करता||१|| तीजा कर्म वेदनी जान | तासों निराबाध गुणहान || चौथा महामोह जिन भनै । जो समकित थरु चारित ह || ५ || To strIytr * * यू.. TIT
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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