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________________ Katttitutthattatuttitutttituterstituttituatter ७e जैनग्रन्थरत्नाकरे सुलथ्यो है कमल बनारसी विशेष ताको, सुनिवेकी इच्छा भई जिनमत ग्रन्थको । ऐसे ही जुगति पाय जोगी जोग निधि साथै, जोगनिधि साधै तो सिधावै सिद्धपंथको ॥ २३ ॥ नीच मतिहीन कहै सो तो न व्है केवलीपैं, ___ कहै कर्महीन सो तो सिद्ध परमितको । धियागारी धरै धिया सारसुत ऐसी धरी, मेघाके मिलापसों मथन निज चितको । मूरख कहैं ते साधे परम अवधिवार, ___ तहां न विचार कछु हित अनहितको । बानारसीदास तोसो निज ज्ञान गेह आये, लोगनकी गारी सो सिंगार समकितको ।। २४ ॥ चंचलता बाला वैस भौंरी दै दै भूमि फिरै, घर तरु भूमि देखै घूमत भरमतें। यों ही पर योगपरणतिसेती परबंध, औदयिक भाव मूढ़ पावे ना मरमतें ।। निजकृत मानै तातें घटनि विशेष माने, बढ़े परजाय याही कठिन करमतें । वानारसीदास ऐसे विकल विभाव छूटे, बुद्धि विसराम पावै स्वभाव धरमतें ॥२५॥ kikattrkutketatuttekt.ki.k.ketitutkutekickakakakuttitukutiktitutkutek.kot.kutkutta
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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