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Markt.kettrtatt.t.ttitutet tettetst.titutituterta ३६८ जैनग्रन्थरलाकरे
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मधुकरसमता यस्तेन सोमप्रमेण ____व्यरचि मुनिपनेत्रा सूक्तिमुक्तावलीयम् ॥ ९९ ॥
कवित्त छन्द। जैन वंश सर हंस दिगम्बर मुनिपति अजितदेव अति आरज।। ताके पद वादीमदभंजन; प्रघटे विजयसेन आचारज ॥ ताके पट्ट भये सोमप्रभा तिन ये ग्रन्थ कियो हित कारज । जाके पढत सुनत अवधारत, हैं सुपुरुष जे पुरुष अनारज॥९॥
इन्द्रवत्रा। सोमप्रभाचार्यमभा च लोके वस्तु प्रकाशं कुरुते यथाशु । तथायमुञ्चरुपदेशलेशः शुभोत्सवज्ञानगुणांस्तनोति ॥१०॥ भाषाग्रन्थकर्ताकी ओरसे नामादि.
दोहा छंद। नाम सूक्तिमुक्तावली; द्वाविंशति अधिकार । शत श्लोक परमान सव; इति ग्रन्थविस्तार ॥१॥ कुँवरपाल वानारसी; मित्र जुगल इकचित्त ।। तिनहिं ग्रन्थ भाषा कियो; बहुविधि छन्द कवित्त ॥२॥ सोलहसै इक्यानवे; ऋतु ग्रीषम वैशाख ।
सोमवार एकादशी; करनछत्र सित पाख ॥ ३ ॥ इति.श्रीसोमप्रभाचार्यविरचिता सिन्दूरप्रकरापरपर्याया सूचिमुकावली
भाषाछन्दानुवादसहिता समाप्ता।
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१ इस श्लोकका भाषा छंद भी नहिं मिला.