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________________ . + 4 + + + + + VAZAMAALMALAYAL HALALAMAN L - - Kukututitutitutittutttnt titttttuttukututut-t-x-t-trt-t«tržetetukukatutututut,tuta जैनग्रन्थरलाकरे mammunarmannanna wasama mums घनाक्षरी छन्दा जाको भोग भाव दीसै कारे नागकेसे फन, ___ राजको समाज दीखे जैसो रजकोप है। जाको परवारको वढाव घेराबंध सूझे, विप सुख सौंजकों विचारै विपपोप है ॥ लसै यों विभूति ज्यों भसमिको विभूति कहै, ___ बनता विलासमैं विलोकै दृढ दोप है। ऐसो जान त्यागै यह महिमा विरागताकी, ताहीको वैराग सही ताके ढिग मोप है ॥ ९ ॥ इति २२ अधिकार समाप्तम् अथ उपदेश गाथा। उपेन्द्रवन्ना। जिनेन्द्रपूजा गुरुपर्युपास्तिः सत्त्वानुकम्पा शुभपात्रदानम्।। * गुणानुरागः श्रुतिरागमस्य नृजन्मवृक्षस्य फलान्यमृनि ९३ मत्तगयन्द । कै परमेश्वरकी अरचा विधि, सो गुरुकी उपसर्पन कीजे। दीन विलोक दया धरिये चित, प्रासुक दान सुपत्तहिं दीजे ॥ गाहक हो गुनको गहिये, रुचिसौं जिन आगमको रस पीजे । ये करनी करिये ग्रहमैं बस, यो जगमें नरमोफल लीजै ॥१३॥ शिखरिणी। 'त्रिसंध्यं देवार्चा विरचय च यं प्रापय कशः . श्रियः पाने वापं जनय नयमार्ग नय मनः । .. satttt.ttentitatituttitut.titizXXXnzxx.rek k kxxsksutraEntrixkrit
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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