SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वनारसीविलासः aar ar httt.tituttotokatokotteketsextutekuttitutitutekuttituttttttituttituttitut.titute यः पुण्यद्रुमखण्डखण्डनविधी स्फूर्जत्कुठारायते * तं लुप्तवतमुद्रमिन्द्रियगणं जित्वा शुभंयुभव ॥ ६९ हरिगीतिका । जे जगत जनको कुपंय डारहि, बक्र शिक्षित तुरगसे । जे हरहिं परम विवेक जीवन, काल दारुण उरगसे ॥ जे पुण्यवृक्षकुठार तीखन, गुपति व्रत मुद्रा करें। ते करनमुभट प्रहार मविजन, तब सुमारग पग धेरै ॥ ६९॥ शिखरिणी। प्रतिष्ठां यन्निष्टां नयति नयनिष्ठां विघटय त्यकृत्येप्वायत्ते मतिमतपसि प्रेम तनुते । विवेकस्योत्सेकं विदलयति दत्ते च विपदं पदं तद्दोपाणां करणनिकुलम्ब कुरु वशे ॥ ७ ॥ बनाक्षरी। ये ही हैं कुगतिके निदानी दुख दोष दानी; इनहीकी संगतसों संग मार बहिये । इनकी मगनतासों विमोको विनाश होय, ___ इनहीकी प्रीतसों अनीत पन्थ गहिये ॥ ये ही तपभावकों विडारै दुराचार घारे, इनहीकी तपत विवेक भूमि दहिये । ये ही इन्द्री मुमट इनहिं जीत सोई साधु, _इनको मिलापी सो तो महापापी कहिये ।। ७० ॥ Hutatistitutitutituttitutituatttituttituttitutituttituttitatutetotttttitutstatuttt.toy
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy