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________________ बनारसीविलासः mernameworm romainwrrinirmanna ann .... totnt.t.ttt.kekutat.x.t.tterkixxx Hakkukkukuttekakuckrtiktattitutek.kuttekuttikaitrctet.t.ttituttotkekastutakkar चैतन्यस्य निषूदने विपतरोः सब्रह्मचारी चिरं सक्रोधः कुशलामिलापकुशलैर्निर्मूलमुन्मूल्यताम्॥४५॥ गीताछन्द। जो मुजन चित्त विकार कारन; मनहु मदिरा पान । जो भरम भय चिन्ता बढावत, असित सर्प समान ॥ जो जंतु जीवन हरन विपतला तनदहनदवदान । सो कोपरास विनास भविजन; लहहु शिव सुखथान ॥ १५॥ हारिणी। फलति कलितश्नेय श्रेणीप्रसूनपरम्परः __प्रशमपयसा सितो मुक्ति तपश्चरणद्रुमः। ___ यदि पुनरसौ प्रत्यासत्ति प्रकोपहविर्भुजो भजति लभते भस्मीभावं तदा विफलोदयः ॥४६॥ ३. माना सर्वया। जय मुनि कोइ बोय तप तरुवर उपशम जल सींचत चितखेत। उदित जान साखा गुण पल्लय; मंगल पहुप मुकत फलहेत ॥ तब तिहि कोप दवानल उपजत, महामोह दल पवन समेत ।। सो भस्मंत करत छिन अंतर, दाहत विरखसहित मुनिचेत४६॥ ___शार्दूलविक्रीढित। संतापं तनुते भिनत्ति विनयं सौहार्दमुत्सादय3 युद्धेगे जनयत्यवधवचनं सूते विनत्ते कलिम्। कीति कृन्तति दुर्मति वितरति व्याहन्ति पुण्योदय दत्ते यः कुति स हातुमुचितो रोपः सदोपः सताम् ॥ statut.xxx.k.k.ki
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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