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________________ ket.titut.ttttttt.ki.k.kutkott.tot-tt.titut.tta M . 大と大大大大大大大大大大・大・大・大・大・大・ち・ち・ちいさなと法衣・大・ जैनग्रन्थरत्नाकरे marnamamarimmar सांपके बदन जैसे अमृत न उपजता कालकूट खाये जैसे जीवन न जानिये ॥ कलह करत नहिं पाइये सुजस जैसे बाढ़तरसांस रोग नाश न यखानिये । पाणी वाहिं तैसें; धर्मकी निशानी नाहिं, याहीत वनारसी विवेक मन आनिये ॥ २७ ॥ शार्दूलविक्रीडित । आयुर्दीर्घतरं वपुर्वरतरं गोत्रं गरीयस्तरं वित्र भूरितरं बलं बहुतरं स्वामित्वमुचैस्तरम् । आरोग्यं विगतान्तरं त्रिजगति श्लाघ्यत्वमल्पेतर संसाराम्बुनिधिं करोति सुतरं चेतः कृपान्तरम्।। ३१ मात्रा सवैया छन्द्र। दीरघ आयु नाम कुल उत्तम गुण संपति आनंद निवास । उन्नति विभव सुगम भवसागर; तीन भवन महिमा परकास ।। मुजवलवंत अनंतरूप छवि; रोगरहित नित भोगविलास ॥ जिनके चित्तदयाल तिन्होंके, सब सुख होंहि वनारसिदास ॥ सत्यवचन अधिकार। विश्वासायतनं विपत्तिदलनं देवैः कृताराधनं मुक्तः पथ्यदनं जलाग्निशमनं व्याघ्रोरगस्तम्भनम् । श्रेयःसंवननं समृद्धिजननं सौजन्यसंजीवनं 2 'कीर्तेः केलिवनं प्रभावभवनं सत्यं वचः पावनम् २९ Statitutikukurkurantarvanartharitrakattitut. k Katutututukattokritet kužek. ritikusukrit
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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