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________________ + TeriwASS + + + + + +। AAAAALAWAR SARALAN जैनग्रन्थरताकरे kkkkk-titutikatuttitutkukk-kukrt-titut-t.ket.ttituttitutkukkukt.kokrtik kat.ki शार्दूलविक्रीडित। सन्तः सन्तु मम प्रसन्नमनसो वाचां विचारोद्यताः सूतेऽम्भः कमलानि तत्परिमलं वाता वितन्वन्ति यत् ।। कि वाभ्यर्थनयानया यदि गुणोऽस्त्यासां ततस्ते स्वयं । कर्तारः प्रथने न चेदय यशःप्रत्यर्थिना तेन किम् ॥२॥ दोधकान्तयेसरीछन्द । जैसे कमल सरोवर वासै । परिमल तासु पवन परकाश। त्यों कवि भापहिं अक्षर जोर। संत सुजस प्रगटहि चहुओर ॥ ॐ जो गुणवन्त रसाल कवि, तो जग महिमा होय । * जो कवि अक्षर गुणरहित, तौ आदरै न कोय ॥ २॥ इन्द्रवजा। त्रिवर्गसंसाधनमन्तरेण पशोरिवायुर्विफलं नरस्य । । तत्रापि धर्म प्रवरं वदन्ति न त विना यद्भवतोऽर्थकामौ ॥ दोधकान्तयेसरीछन्द। सुपुरुष तीन पदारथ साधहिं । धर्म विशेष जान आराधहिं । धरम प्रधान कहै सब कोय । अर्थ काम धर्महितें होय ॥ धर्म करत संसारसुख, धर्म करत निर्वान । धर्मपंथसाधनविना, नर तियेच समान ॥ ३ ॥ यः प्राप्य दुष्प्रापमिदं नरत्वं धर्म न यत्नेन करोति मूढः। क्लेशप्रयन्धेन स लब्धमधौ चिन्तामणि पातयति प्रमादात् ॥ Audt...ttit-titutteketitutet-t-t.xattituttituttiksei
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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