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________________ ८ जैनग्रन्थरत्नाकरे भूविवान भूतेश मारछम भर्म उछेदक 1 सिंहासननायक निराश निरभयपदवेदक ॥ ४१ ॥ शिवकारण शिवकरन भविक बंधव भवनाशन । नीरिवंश निःसमर सिद्धिशासन शिवआसन || महाकाजं महाराज मारजित मारविहंडन । गुणमय द्रव्यवरूप दशाघर दारिदखंडन ॥ ४२ ॥ जोगी जोग अतीत जगत उद्धरन उजागर । जगतबंधु जिनराज शीलसंचय सुखसागर ॥ महाशूर सुखसदन तरनतारन तमनाशन । अगनितनाम अनंतधाम निरमद निश्वासन ॥ ४३ ॥ वारिजवत जलजवत पद्म उपमा पंकजयत । महाराम महधाम महायशवंत महासत || निजकृपालु करुणाल बोघनायक विद्यानिधि | प्रशमरूप प्रशमीश परमजोगीश परमविधि ॥ ४४ ॥ वस्तुछन्द. सुरस्रभोगी रसील समुदायकी चाल --- शुभकारनशील इह सील राशि संकट निवारन । त्रिगुणातम तपतिहर परमहंसपर पंचवारन || परम पदारथ परमपथ, दुखभंजन दुरलक्ष । तोषी सुखपोषी सुगति, दमी दिगम्बर दक्ष ॥ ४५ ॥ इति महामंत्र नाम पंचम शतक ॥५॥
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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