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जैनग्रन्थरत्नाकरे
भूविवान भूतेश मारछम भर्म उछेदक 1 सिंहासननायक निराश निरभयपदवेदक ॥ ४१ ॥
शिवकारण शिवकरन भविक बंधव भवनाशन ।
नीरिवंश निःसमर सिद्धिशासन शिवआसन || महाकाजं महाराज मारजित मारविहंडन ।
गुणमय द्रव्यवरूप दशाघर दारिदखंडन ॥ ४२ ॥ जोगी जोग अतीत जगत उद्धरन उजागर ।
जगतबंधु जिनराज शीलसंचय सुखसागर ॥
महाशूर सुखसदन तरनतारन तमनाशन । अगनितनाम अनंतधाम निरमद निश्वासन ॥ ४३ ॥ वारिजवत जलजवत पद्म उपमा पंकजयत ।
महाराम महधाम महायशवंत महासत || निजकृपालु करुणाल बोघनायक विद्यानिधि | प्रशमरूप प्रशमीश परमजोगीश परमविधि ॥ ४४ ॥
वस्तुछन्द.
सुरस्रभोगी रसील समुदायकी चाल ---
शुभकारनशील इह सील राशि संकट निवारन । त्रिगुणातम तपतिहर परमहंसपर पंचवारन || परम पदारथ परमपथ, दुखभंजन दुरलक्ष । तोषी सुखपोषी सुगति, दमी दिगम्बर दक्ष ॥ ४५ ॥
इति महामंत्र नाम पंचम शतक ॥५॥