SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 8 जैनग्रन्थरलाकरे Uttarikatokutaketakkkkatekestutkukkkatitutetakkekat.ttest-tetatuttitutetotukatta अनवस्थित अध्यातमरूप | आगमरूपी अघट अनूप ॥ अपट अरूपी अभय अमार अनुभवमंडन अनघ अपार ॥६॥ विमलपूतशासन दातार । दशातीत उद्धरन उदार ॥ नभवत पुंडरीकवत हंस । करुणामन्दिर एनविध्वंस || ७ || निराकार निहचै निरमान । नानारसी लोकपरमान ॥ सुखधर्मी सुखज्ञ सुखपाल । सुन्दर गुणमन्दिर गुणमाल ॥ ८॥ दोहा. अम्बरवत आकाशवत, क्रियारूप करतार । केवलरूपी कौतुकी, कुशली करुणागार ।। १२ ।। इति ओंकार नाम प्रथमशतक nan चौपाई. ज्ञानगम्य अध्यातमगम्य । रमाविराम रमापति रम्य ॥ ई अप्रमाण अधहरण पुराण । अनमित लोकालोक प्रमाणा॥१३ कृपासिन्धु कूटस्थ अछाय । अनभव अनारूढ असहाय ॥ सुगम अनन्तराम गुणग्राम । करुणापालक करुणाधाम || १४| लोकविकाशी लक्षणवन्त । परमदेव परब्रह्म अनन्त ॥ दुराराध्य दुर्गस्थ दयाल । दुरारोह दुर्गम दिकपाल ॥१५॥ सत्यारथ सुखदायक सूर । शीलशिरोमणि करुणापूर ॥ ज्ञानगर्ने चिद्रूप निधान । नित्यानन्द निगम निरजान ॥१६॥ १. 'विपुल ऐसा भी पाठ है. TREATMENTRE ALT--3-kit-kkrt.itil-kit-it-krtet-kutt-kittukkk.x.k.ket.iktituttak-krt. t tatotket
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy