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________________ सुभाषितमञ्जरे अर्था:- यह क्रोध रूपी सुभट अहकार क्यो करता है, जब कि वह स्त्री रूप (स्त्री लिंग ) क्षमा के द्वारा अनायास ही पराजित हो चुका है ॥१३३।। मूर्ख अपराधी क्षमा के पात्र हैं अबुद्धिमाश्रितानां च क्षन्तव्यमपराधिनाम् न हि सर्वत्र पाण्डित्यं सुलभं पुरुषे क्वचित्।।१३४॥ अर्थः- मूर्ख अपराधियो को क्षमा करना चाहिये। क्योकि सभी पुरुषो मे, कही भी पाण्डित्य सुलभ नही है ।।१३४।। क्रोध का पात्र क्रोध है अपकारिणि चेत्क्रोधः, क्रोधे क्रोधः कथं न ते । धर्मार्थकाममोक्षाणां चतुर्णा परिपन्थिनि ।।१३।। अर्था:- यदि अपराधी पर क्रोध करना है तो धर्म, अर्थ काम और मोक्ष-चारो के विरोधी क्रोध पर तुझे क्रोध क्यो नही पाता है ? ॥१३।।
SR No.010698
Book TitleSubhashit Manjari Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri, Pannalal Jain
PublisherShantilal Jain
Publication Year
Total Pages201
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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