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________________ सुभाषितमञ्जरो अर्थ - स्त्री स्प पनिव्रत्य धर्म है, कोकिलापो का रुप स्वर है. कुरुप मनुष्यो का स्प विद्या है और तपस्वियो का रूप धमा है ।।१२७।। क्षमावान् मनुष्यो का एक दोप (१) एकः क्षमावतां दोपो द्वितीयो नोपलभ्यते । यदेनं क्षमया युक्तमशक्तं मन्यते जनः ॥१२८।। शशु क्षमावान मनुष्यो का एक ही दोष उपलब्ध है दूसरा नही, वह यह कि आमा मे युक्त मनुष्य को लोग असमर्थ समझते हैं ॥१२॥ क्षमा से क्या माध्य नही है ? क्षमार नमशस्तानां शक्तानां भूषणं नमा । चमावशीकृतोलोकः क्षमया किं न माध्यते।।१२६ ।। थं मा असमर्थ मनुष्यो का बल है, और ममर्थ मनुष्यों का आभूपण है । साग ससार क्षमा से वग मे हो जाता है सो ठीक है क्षमा से नया नहीं मिद होता ? ||१२६।। क्षमा ज्ञान का ग्राभरण है। नरम्याभररसप, रूपस्याभरण गुणाः । गुणम्याभरणं ज्ञानं तानस्याभरणं नमा१३०॥ .
SR No.010698
Book TitleSubhashit Manjari Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri, Pannalal Jain
PublisherShantilal Jain
Publication Year
Total Pages201
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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