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________________ सुभाषितमञ्जरो ५१ सम्बल धन है, किसी का सम्बल मनुष्यता है और मुनियो का सम्बल क्षमा है ।।१२।। सबल निर्बल पर कोप नही करते यद्यपि रटति सरोपो मृगपतिपुरतोऽपि मत्तगोमायुः । तदपि न कुप्यति सिंहो ह्यसशि पुरुपे कुतः कोपः ॥१२२।। अर्था:- यद्यपि क्रोध से युक्त मत्त शृगाल सिह के सामने भी सब्द करता है तथापि सिंह कुपित नही होता सो ठीक है, क्योकि अपनी समानता न रखने वाले पुरुष पर क्रोध कैसे किया जा सकता है ? ॥१२२॥ क्षमा ही आभूषण है सुतवन्धुपदातीना-मपराधशतान्यपि । महात्मानः क्षमन्ते हि तेषां तद्धि विभूपणम् ।। १२३ ॥ अर्था महात्मा पुरुष पुत्र, बन्धु और सेवक प्रादि से सैकडो अपराध क्षमा करते है, सो ठीक ही है क्योकि क्षमा उनका प्राभूपण है ॥१२३॥ क्षमा करोडो ध्यान के समान हैं पुण्यकोटीसमं स्तोत्रं स्तोत्रकोटिसमो जपः । जपकोटीसमं ध्यानं ध्यानकोटीसमा क्षमा ॥ १२४॥
SR No.010698
Book TitleSubhashit Manjari Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri, Pannalal Jain
PublisherShantilal Jain
Publication Year
Total Pages201
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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