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________________ ४२५ श्लोको का मुद्रण हो सका । चातुर्मास के वाद अन्यत्र विहार हो जाने से मुद्रण स्थगित हो गया। अत ४२५ श्लोको का संग्रह पूर्वार्द्ध के रूप मे प्रकाशित किया जा रहा है आगे का भाग उतरार्द्ध के रूप मे प्रकाशित किया जावेगा। __ इस ग्रन्थ की प्रेसकापी तैयार करने तथा प्रकरणो को विषयवार विभाजित करने मे सघस्थित आर्यिका श्री १०५ विशुद्धमतीजी ने पर्याप्त योग दिया है तथा प्रकाशन मे श्री प ० गुलजारीलालजी चौधरी, केसली (सागर) और जौहरी श्री मोतीलालजी व महावीरजी मिन्डा उदयपुर ने बहुत सहयोग किया है इसके लिये इन सबके प्रति आभार प्रकट करता है। सभापित मञ्जरी पूर्वार्द्ध का प्रकाशन श्री शान्तिलाल जी जैन प्रो० शान्तिनाथ रोडवेज कलकत्ता की ओर से हों रहा है आप अत्यन्त उदार हृदय के व्यक्ति है। आपकी उदारता के फल स्वरूप ही इसका अमूल्य विवरण किया जा रहा है । प्राशा है अन्य सहधर्मी भाई भी इनका अनुकरण कर जिन वाणी के प्रचार मे योग दान करेंगे। अन्त मे श्री १०८ मुनि अजितसागरजी महाराज के प्रति कृतज्ञता प्रकट करता हुआ आशा रखता हूँ कि आपके द्वारा इसी प्रकार अनेक ग्रन्थो का उद्धार होता रहेगा। विनीतपन्नालाल साहित्याचार्य
SR No.010698
Book TitleSubhashit Manjari Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri, Pannalal Jain
PublisherShantilal Jain
Publication Year
Total Pages201
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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