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________________ २९ सुभाषितमञ्जरी स्थित रहते हैं, पक्षी के समान नि सङ्ग-निष्परिग्रह रहते हैं और सिंह के समान निर्भय होते हैं ॥६६॥ मुनिपद को कौन प्राप्त होते हैं ? ऐरण्डसदृशं ज्ञात्वा मनुष्यत्वमसारकम् । सङ्गन रहिता धन्याः श्रमणावमुपाश्रिताः ॥६७॥ अर्थ:- भाग्यशाली मनुष्य, मनुष्य भव को ऐरण के समान निसार जानकर परिग्रह से रहित होते हुए मुनिपद को प्राप्त होता है ।।६७॥ गुरुगौरवम् गुरु किसे कहते हैं ? सर्वशास्त्रविदो धीराः सर्वसत्वहितकरः । रागद्व पविनिमुक्ता गुरवो गरिमान्विताः ॥६८॥ . अर्था - जो समस्त शास्त्रो के ज्ञाता हैं, धीरवीर हैं, सब प्राणियो का हित करने वाले हैं, तथा रागद्वेष से रहित है ऐसे गुरु ही गौरव से गहित होते है ॥६८।।
SR No.010698
Book TitleSubhashit Manjari Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri, Pannalal Jain
PublisherShantilal Jain
Publication Year
Total Pages201
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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