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________________ सुभाषितमञ्जरी मध्याह्म और सायकाल इन तीनों सध्याओं में भगवान् की पूजा और स्तवन करना चाहिये । जप, ध्यान और स्तवन से सहित भगवान की पूजा को उत्तमाचरण कहा गया है ।२६॥ पुष्प से की जाने वाली पूजा का फल सामोदै जलोद्भुतैः पुष्पैर्यो जिनमर्चति । विमानं पुष्पकं प्राप्य स क्रीडति यथेप्सितम् ,२७। अर्थ-जो पुरुष पृथ्वी और जल में उत्पन्न हुए सुगन्धित पुष्पो से जिनेन्द्र भगवान् की पूजा करता है वह पुष्पक विमान को पाकर इच्छानुसार क्रीडा करता है ॥२७॥ जिन मन्दिर में दीपक रखने का फल । यो जिनेन्द्रालये दीपं ददाति शुभभावतः । स्वयंप्रभशरीरोऽसौ जायते सुरस पनि ॥२८॥ अर्धा--जो भव्यात्मा शुभ भाव से जिन मन्दिर में दीपक देता है वह स्वर्ग में दैदीप्यमान शरीर का धारक देष होता है ।२८॥ धूप से पूजा का फल धूपयश्चन्दनाशुनगुर्वादिप्रभवं सुधीः । जिनानां ढौकयत्येष जायते सुरभिः सुरः ॥२६॥ जो बुद्धिमान पुरुष जिनेन्द्र भगवान की चन्दन तथा
SR No.010698
Book TitleSubhashit Manjari Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri, Pannalal Jain
PublisherShantilal Jain
Publication Year
Total Pages201
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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