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________________ सुभापितमञ्जरी १४६ उत्तम पुरुष कव भोजन करते है ? पितु र्मातुः शिशोः पात्रगर्भिणीवृद्धरोगिणाम् । प्रथमं भोजनं दत्वा स्वयं भोक्तव्यमुत्तमैः ।।३७६।। अ - पिता, माता , बालक , मुनि आदि योग्य पात्र , गर्भिणी स्त्री, वृद्ध और रोगी मनुष्यों को पहले भोजन देकर पीछे उत्तम पुरुषों को स्वयं भोजन करना चाहिये ॥३७६।। किनके पद पद पर तीर्थ है ? परद्रव्येषु ये हयन्धाः परस्त्रीषु नपुसंकाः । परापवादने मूकास्तेपां तीर्थं पदे पदे ॥३७७॥ अर्थ - जो दूसरे के धन मे अन्धे है, परस्त्रियों के विषय ने नपुसंक है और दूसरे की निन्दा करने मे गूगे है उन्हे पद पद पर तीर्थ हैं ॥३७७|| देवताओं के समान पुरुप कौन है ? परपरिवादनमकाः परदोपनिदर्शने चान्धाः । परकटुकवचनवधिरास्ते पुरुपा देवतासदृशाः ॥३७८॥ अर्थ:- जो दूसरे की निन्दा करने मे गूगे है, दूसरे के दोष देखने मे अन्धे हैं और दूसरे के कडए वचन सुनने में वहरे है वे पुरुष देवता के समान हैं ॥३७८॥
SR No.010698
Book TitleSubhashit Manjari Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri, Pannalal Jain
PublisherShantilal Jain
Publication Year
Total Pages201
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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