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________________ सुभाषितमञ्जरी ११३ संयम का क्या लक्षण व्रतानां धारणे दण्डत्यागः समितिपालनम् । कषायनिग्रहोऽक्षाणां जयः संयम इष्यते ।।२८०॥ अर्थ व्रतों का धारण करना, मन वचन काय की प्रवृत्ति रूप दण्डों का त्याग करना, समितियों का पालन करना, कषायों का निग्रह करना, और इन्द्रियों को जीतना संयम कहलाता है ॥२८॥ वैराग्य धारण करने की प्रेरणा वैराग्यसारं दुरितापहारं मुक्त्यङ्गनादानविवौ समर्थम् । पापारिवृक्षस्य महाकुंठारं सौख्याकरं त्वं भज सर्वकालम् ॥ अर्था:- हे आत्मन् ! पापों के नाशक, मुक्तिरूपी स्त्री के देने मे समर्थ, पापरूप वृक्ष को नष्ट करने के लिये तीक्ष्ण कुठार तथा सुखों की खान स्वरूप वैराग्य को तू सदा धारण कर ॥२८॥ तप धारण करने की प्रेरणा स्वागताच्छन्दः कर्मपर्वतनिपातनवज्र स्वर्गमुक्तिसुखसाधनमन्त्रम् ! . मन्मथेन्द्रियदमं शुभवीजं त्वं तपः कुरु समीहितदात् ।२८२॥
SR No.010698
Book TitleSubhashit Manjari Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri, Pannalal Jain
PublisherShantilal Jain
Publication Year
Total Pages201
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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