SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६७ सुभापितमञ्जरी अर्था:- पेय पदार्थो के दान से जनता को आनन्द देने वाली, चन्द्रमा की कान्ति के समान निर्मल और संताप को दूर करने वाली वाणी प्राप्त होती है ॥२४१।। निवास दान का फल विचित्ररत्ननिर्माणः प्रोतुङ्गो बहुभूमिकः । लभ्यते वासदानेन वासश्चन्द्रकरोज्ज्वलः ॥२४२॥ अ - निवास स्थान के देने से चित्र विचित्र रत्नों से निर्मित, ऊंचा, अनेकतल्लों वाला एवं चन्द्रमा की किरणों के समान उज्ज्वल भवन प्राप्त होता है ।।२४२।। . मन्दिर में छत्र चामर आदि उपकरण चढ़ाने का फल छत्रचामरलम्बापताकादर्पणदिभिः । भूषयिचा जिनस्थानं याति विस्मयिनी गतिम् ॥२४३॥ अर्थ- छत्र, चामर, फन्नूस, पताका और दर्पण आदि के द्वारा जिन मन्दिर को विभूषित कर मनुष्य आश्चर्यकारक लक्ष्मी को प्राप्त होता है। किस समय क्या देना चाहिये ? उष्णकाले जलं दद्यान्छीतकाले च कार्यसम् । प्राट्काले गृहं दद्यात्सर्वकाले च भोजनम् ।।२४४॥
SR No.010698
Book TitleSubhashit Manjari Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri, Pannalal Jain
PublisherShantilal Jain
Publication Year
Total Pages201
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy