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________________ বুগাতিনমহী ওও अर्थ - परिग्रही मनुष्य नहीं पूजा जाता किन्तु परिग्रह रहित मनुष्य पूजा जाता है क्याकि छिलके से रहित चावल राजानो के ललाट पर स्थित होते हैं ।।१८७॥ निष्परिग्रहता से क्या लाभ है ? साक्षाल्लसतीव संयमतरुनिर्भीकता रोहतीबोल्ला प्रतीष शान्तिपदबी शुद्धि दधातीव च । धर्मः शर्मकरः समस्तविषयव्यामुग्धता मूर्च्छतीवामङ्ग लसतीव लाघवगुणः स्वायत्तता क्रीडति १८८।। अर्थ - निष्परिग्रहता मे ऐसा जान पडता है मानो मयभ-- रूपी वृक्ष साक्षात् लहलहा रहा हो, निर्भीकता बढ रही हो, शान्ति का मार्ग उल्लास को प्राप्त हो रहा हो, मुग्वकारी धर्म शुद्धि को धारण कर रहा हो, समस्त विषयो का व्यामोह मूछित हो रहा हो, भारहीनता सुशोभित हो रही हो और स्वाधीनता क्रीडा कर रही हो ।।१८८।।
SR No.010698
Book TitleSubhashit Manjari Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri, Pannalal Jain
PublisherShantilal Jain
Publication Year
Total Pages201
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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