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________________ ज्ञानानन्दरत्नाकर। इसहेतु से गजमुख कहागणराज का यों जिनभनी, चलें मंदगति अवादष्टि मूसावाहन उपमागाई । तिनका वर्णन जिनागम के अनुगार सुनाभाई ॥ २॥ , सम्पूर्णश्रुत सिंधुभरा जिनपेट में उपमा देनबहे, तिसउपमा के हेतुसे लम्बोदर गणराज कहे । सबसे उत्तम पदस्थ जिनका उत्कृष्ठों में श्रेष्ठलई, इसीसेएकत् अन्त एकदन्त सभा राजरहे ।। शर। विनय जिनकी सवरें इससे विनायक नामहै, शिवसकल परमात्मा जिने. श्वर शिष्यमुत गुणधाम है। पतिअप्ठ ऋद्धिरुसिद्धि के शिवपढ में रत यह काम है, मुनिगणको मोदक बहुतप्यारो लगत आगे यामहै । विजय अन्त की मालाधारें और चाह सबविराराई, तिनका वर्णन जिनागमके अनुसारमुनो भाई ॥ ३॥ ऐसे श्रीगणराज गजानन गणधर गणपति कहेगणेश, मूसा: वाहन विनायक लम्बोदर वा पुत्रमहेश । इत्यादिक बहुनाम गुणोंकरपार न । जिनकाल, सुरेश, अन्य कल्पना करें तिनको निर्वकजानो मूढेश ॥ शर। उमाके तनमैल से रचना कहै अज्ञानसो. गजशांश अारोपण करें एकदन्त, युत नादान सो । माने सवारी ऊंदरा शरुपेट दोलसमानसो, समझे न श्राशय गढको मूहों मे मुखियाजानसो, नाथूराम उपरोक्त कहेगुण प्रणमों ऐसेगणराई तिनका वर्णन जिनागम के अनुसार सुनोभाई ॥ ४ ॥ इतिश्री ज्ञानानन्द रत्नाकर सम्पूर्णम् सन १६०४ ई.
SR No.010697
Book TitleGyanand Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Munshi
PublisherLala Bhagvandas Jain
Publication Year1902
Total Pages97
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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